Wednesday 20 May 2020

एक ख़ालीपन

शाम के साथ आता ख़ालीपन 
वक़्त कटते कटता नहीं 
हर जगह सिर्फ़ ख़ालीपन 
तुम्हारे बग़ैर फैला हुआ ख़ालीपन 
बेमानी सी ज़िंदगी का ख़ालीपन 
कोई आँसू भर नहीं सकता ऐसा ख़ालीपन 
किसिका इंतज़ार करता ख़ालीपन 
अँधेरे का साथी ख़ालीपन 
तनहाई से आदी ये ख़ालीपन 
जाने वो कौनसीं शाम होगी 
जब ये ख़ालीपन जगमगा उठेगा 
जाने वो कौनसा पल होगा 
जब ये तनहाई ख़त्म होगी 
तुम्हारे आने का पल 
वही होगी नई राह 
वही होगा नया उजाला 
-अनघा 


Tuesday 19 May 2020

यादोंक़ी ग़ठरी

यादोंकी गठरी ढूँढी आज 
खोल के देखा तो बहुत कुछ मिला 

कुछ कंचे
कुछ पेन्सिलें
कुछ काग़ज़
कुछ ख़त 
कुछ रंग 
कुछ बिछड़े दोस्त 
कुछ कहानियाँ 
बहोत कुछ जमा कर लिया है
आज सब एक बार थोड़ा थोड़ा देख लिया 
दोस्तोंके साथ बातें कर ली 
अचरज के साथ वो भी बोल बैठे 
अरे कहाँ रेहती है आजकल ?
ना फ़ोन ना मेसिज 
मैंने कहा 
मेरी गठरी नहीं मिल रही थी 
आज मिली है 
थोड़ी धुल जमी थी , साफ़ की 
वो सब हंसने लगे 
पगली कहीं की 
कहीं यादों की गठरी भी खोती है??

मैंने हंस कर वापस सब गठरी में बंद कर दिया 
अब ध्यान से रखी है 
जब बचपन की याद आएगी तब वापस खोल दूँगी 
यादोंकी गठरी 

अनघा 

Thursday 28 July 2016

तरसते है तुम्हारे लिए
एक बार के दीदार के लिए
कभी वक़्त का साथ नही मिला
तो तुम्हारा नाम काग़ज़ पे लिख के
उसी को चूमा करते है

वक़्त भी तो behaviour देखो
तुम्हारे साथ उसका पता ही नही चलता
पर तुम्हारे बग़ैर हर लम्हा मानो लम्बे que सा लगता है
जो कभी आगे बढ़ती ही नहीं

Wednesday 20 July 2016

राह चलते कुछ फ़रिश्ते मिले थे
आदमियों जैसे लग रहे थे
राह चलते किसी का हाथ थामे उसे रास्ता दिखा रहे थे
रात का समय था इसलिए कुछ दिखायी नही दिया
आज सुबह पता चला
जब वहाँ पे पुलिस के घेरे में लाश दिखी
फ़रिश्ते नहीं आदमी ही थे

Thursday 7 April 2016

तुम्हारी यादोंको दिल ने ऐसा थामा था 
हर पल लगता था 
कहीं कोई मोड़ तुम्हें वापस ले आएगा 
हर आहट पे लगता था 
तुम वापस आ गए 
कितनी ग़लत थी मैं 
गर मेरा होता तो शायद वापस आ भी जाता 
एक आख़री उम्मीद थी 
आज वो भी टूट गयी 
तुम्हारे दिल ने गवाही दे दी 
किसी और के प्यार की 

Wednesday 24 February 2016

वादे तो बहुत किए थे तुमने 
साथ निभाने के 
साथ निभाया भी 
बिना वक़्त दिए 
जब वक़्त माँगा 
तो हँसके इतना ही कहा था तुमने 
वादा तो सिर्फ़ साथ निभाने का था 
वक़्त देने का नहीं
--अनघा

Saturday 30 January 2016

कुछ बातें अनकहि
आँखोंसे कहीं थीं
शायद वहीं रह गयी 
जहाँ पे तुमने मोड़ लिया था

कुछ बातें 
तुमने कहीं थी
सीधी दिल पे लगी थी
आज भी साथ है 

बहोत चाहा था 
उन्हें भी उसी मोड़ पे छोड़ दूँ
कोशिश भी की थी 
पर सच कहा है किसने 
इंसान साथ नहीं देते 
पर कही बातें साथ रेहती है